ना जाने तुम कहाँ हो, कैसी हो,
किस प्रांत, शहर, या देश जा बसी हो?
सालों से तुमको सुना नहीं,
चेहरा तो याद है अब भी,
पर बरसों से तुमको देखा नहीं।
वो तीखे नयन,
गुस्से क भार उथाए,
ऊँची और सिकुड़ती नाक,
बड़ा सा बल खाया माथा,
उस पर लटकती 1 लट,
और वही सुबह की ताज़ी चाय सी मुस्कान,
सब कल ही की बात लगती है।
वज़न तो शायद बढ़ गया होगा,
वो चॉकलेट का चस्का अब उतर गया होगा,
पर चाल तो अभी भी वही होगी,
मस्तानी बेल सी चोटी,
अब भी बिन हवा के झूमती होगी।
आज कुछ कहना था तुमसे,
तो सोचा उन्हीं का सहारा लूँ,
जो कभी ख़त्म हो गए थे हमारे बीच,
हाँ शब्द, जो होकर भी नहीं होते थे,
और हम घंटों, ख़ामोश ही रह जाते थे,
तब चुभती थी ये खामोशी,
कानों और दिल को दुखती थी ये खामोशी,
पर तुम्हारे चले जाने के बाद,
और फिर सब ख़त्म हो जाने के बाद,
मेरी अपनी सी हो गई थी खामोशी,
घंटों इसके संग चलता, बैठता, घूमता,
और जब थक जाता,
तो मुझे अपनी गोद में सुला लेती थी ये खामोशी।
तो बस इतना सा कहना था तुमसे,
की अब मैं लिखने लगा हूँ,
जो कहती थी तुम करने को,
अब वही करने लगा हूँ,
जो कह ना सका तुमसे कभी,
तुम्हारी यादों से कहने लगा हूँ,
हाँ अब मैं लिखने लगा हूँ।
तुम तो नहीं हो यहाँ,
पर ज़माने से बात करने लगा हूँ,
तुम्हारे नाम कई संदेश,
प्रेम पत्र, रोष खाई चिट्ठियाँ,
मान मन्नुवर करते पैग़ाम लिख बैठा हूँ,
हाँ अब मैं लिखने लगा हूँ।
दिन रात लिख लिख कर
डायरियाँ भर चुका हूँ,
कलम दर कलम स्याही के रूप में
अपना प्यार, दर्द और ग़ुस्सा उकेर चुका हूँ,
हाँ अब मैं लिखने लगा हूँ।
हाँ अब मैं लिखने लगा हूँ।