
एक अफवाह है ज़माने में ,
के कई मुसीबतें हैं दिल लगाने में ,
कुछ आग के दरिया की बात करते हैं,
तो कुछ मुहब्बत में फना हो जाने से डरते हैं।
सुना है दिल टूटे जो किसी का
तो शायर बन जाता है,
और मिल जाए मुहब्बत किसी को
तो दुनिया से तर जाता है।
ना जाने कुदरत की दी इस नियमत को
किसने बदनाम किया यूँ ज़माने में
के कई मुसीबतें हैं दिल लगाने में।
प्यार , मुहब्बत, इश्क़
कितने नाम दिए इसे ज़माने ने,
और फिर यही नाम बदनाम हुए मैखाने में।
टूटा जो दिल किसी का
तो मुहब्बत से ऐतबार छोड़ बैठा,
मिला जो धोखा किसी को
तो प्यार के वज़ूद को झूठा कह बैठा,
इश्क की तो बात ही ना कीजिये
हर एक तरफ़ा आशिक़,
इस पर अपना हक़ जमा बैठा।
पर ये जो मुहब्बत ना होती ,
तो दुनिया इतनी रंगीन कैसे होती,
फूलों को हसीन कौन कहता,
बरखा पर गीत कौन लिखता’,
दिन भर तपते सूरज में,
शाम के रंग कौन ढूंढता,
और एक बंजारे से फिरते चाँद में,
मेहबूब का अक्स कौन देखता।
किसी के दिल में उतर जाने को,
किसी की आँखों में डूब जाने को,
और किसी की जुल्फों में उलझ जाने को,
दिल किसका करता,
जो प्यार ना होता दुनिया में,
तो इंसान यूँ कविता का रूप कैसे लेता ।
पर ना जाने क्यूँ फिर भी
एक अफवाह है ज़माने में ,
के कई मुसीबतें हैं दिल लगाने में ।