
वो ओस से भीगी सड़क,
तेज़ हवाओं के बीच,
पेड़ों के झुरमुट की झड़प,
सर्दियों की सुबह,
और सुनसान राहों की तलब।
जमीं पर उतर आए बादलों में,
हमारा ज़माने से छिप जाना,
हाथों में हाथ डाल,
तेरा, मेरे कंधे पर झुक जाना,
जैसे बसंत में किसी टहनी का
फूलों से लद जाना।
पर किसी की आहट सुन,
तेरा झट से अलग हो जाना,
और फिर उसके नज़र से जाते ही,
फिर चुम्बक सा सट जाना,
ना भूल पाऊँगा मैं,
वो तेरा मुझमें सिमट जाना।
ना इकरार की चाहत,
ना इज़हार की ज़रूरत,
बस कुछ कदमों का साथ,
और बरसों की खामोश मुहब्बत।
कैसे भूल जाऊँ मैं,
वो सर्द सी सुबह,
और दो दिलों की तलब,
एक गीली सी सड़क,
और हम दोनों के बीच 2 मजहब।