गंगोत्री से गंगा के घाट तक,
ज़िंदगी की तलाश में,
मैं आज आ पहुँचा हूँ, मृत्य तक।
कई सवाल हैं मेरे ज़हन में,
जो खींच लाए हैं मुझे साधुओं के इस नगर में,
जीवन का तात्पर्य क्या है?
अगर कर्म प्रधान इंसान को केवल कर्म करते हुए जीते रहना है,
तो आखिर जीते रहने का मक़सद क्या है ?
सारा जग कहता है, जीवन एक सफर है ,
तो फिर इस सफर की मंज़िल क्या है ?
सुबह के उगते सूरज के संग यहाँ बैठा,
मैं सीख रहा हूँ इस नदी किनारे होती अनगिनत दिनचर्या से,
एक गहरी नदी की अपारदर्शी सतह से,
और उस शांत सतह पर,
बारिश की बूँद द्वारा बनाई अनगिनत जल तरंगों से।
एक नदी को पवित्र मान,
उसमें अपने पाप धोते इंसानो से,
इंसानो के पाप का बोझ उठाए,
इस पवित्र नदी की गंदगी से।
भोजन की तलाश में नदी के उस पार से,
इंसानों के क़रीब आ पहुँचे पंछियों के झुंड से,
और इन पंछियों को तले बेसन खिला
अपना मनोरंजन करते सैलानियों से,
धरम के प्रथम प्रधान बने पंडों से,
और उनके समक्ष आँखें बंद किये बैठे
पिंड दान करते भक्तों से।
जीवन के अंतिम पड़ाव में ऐश और आराम की दुनिया छोड़,
काशी में आ बसे मौत का इंतज़ार करते बुजुर्गों से
थरथराती बूढ़ी हड्डियों की
शरीर को जर्जर कर देने वाले पानी में डुबकी लगाने की चाह से,
अपनी चिता की अस्थियों को
इस नदी के जल में मिला देने की उम्मीद रखे,
नदी किनारे जलते मुर्दा से,
और उस मुर्दा के मुख में जल डाल
अपनी ज़िम्मेदारियों से फ़ारिग होते रिश्तेदारों से
घाट किनारे ध्यान मगन साधुओं से,
और उन साधुओं के ज्ञान को अपनी तस्वीरों में क़ैद करने का प्रयास करते कलाकारों से,
किसी तलाश में सभी सुविधाएँ छोड़
हज़ारों मील दूर चले आए विदेशियों से,
इस भीड़ में बेचैनी से कुछ ढूंढती उनकी आँखों से ,
मैंने आज सीखा है
इन सभी के दिन प्रतिदिन
अभिन्न अभिज्ञ तप से।
जीवन का लक्ष्य वो नहीं,
जो पढ़ा है हमने किताबों में,
जीवन का लक्ष्य वो भी नहीं ,
जो दिया है हमें धर्म के ठेकेदारों ने,
जीवन के लक्ष्य की परिभाषा,
जितनी ही जटिल एवम लम्बी है,
उतनी ही सरल एवं सूक्ष्म है,
जीवन के लक्ष्य का रहस्य
केवल एक शब्द में समा जाता है-
शांति
शांति की तलाश ही तो है,
जो इन सभी को
यहाँ इस नदी के किनारे खींच लाई है।
परंतु शांति की चाह में ज़िंदगी भर भटकता,
इंसान शांति पाने के लिए हर जुगत तो करता है,
जीवन को एक तप मान
पूरा जीवन कर्म के पीछे भागता ही जीता है,
पर फिर भी इस शांति को पाता क्यूँ नहीं?
जिस भगवान में इंसान को इतनी श्रद्धा है,
वो भगवान इंसानो के इस तप को देख
उसे शांति का वरदान देता क्यूँ नहीं?
जब जीवन जीना ही सबसे बड़ा तप है
तो इंसान को अपने उस तप का फल मिलता क्यूँ नहीं?
मैं आज इस तट से कुछ जवाब
और उन जवाबों से उठे सवाल लिए जा रहा हूँ।
मैं आज गंगा से फिर गंगोत्री लौट रहा हूँ।

Deep poem!
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You would certainly relate to this. The Ganga ghats are so close to you.
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