क्यूँ हम इतने अधूरे हैं के,
किसी के साथ से ही पूरे हैं?
फूल खुद में पूरे हैं,
पेड़ खुद में पूरे हैं,
नादिया खुद में पूरी है,
पहाड़ खुद में पूरे हैं,
धरती खुद में पूरी है,ज़िंदगी की ये राहों में, जब सब इतना हसीन है,
तो फिर इस पर चल रहे दिल, क्यूँ गमगीन हैं?
क्यूँ हम किसी को पाने की चाहत में खुद को ही खो बैठते हैं?
जो संग है, क़रीब है,
उसे भूल,
जो नहीं मिला ज़िंदगी में,
जीवन भर उसी की चाह क्यूँ रखते हैं?
प्यार की परिभाषा में, खोना और पाना किसने लिखा?
जो हुआ तुम्हें किसी से,
वो फिर कभी ना होगा, ये किसने लिखा?
अकेले जीना मुमकिन नहीं,कब, कहाँ और किसने लिखा?
ज़माने के रीति रिवाजों, और नक़ली समाजों की परवाह तुम क्यूँ करते हो?
जो किया नहीं किसी ने, उसे पहली बार करने से क्यूँ डरते हो?
माना के यह रास्ता जटिल हो सकता है,
पर कठिनाई को देखने से पहले ही उससे क्यूँ डरते हो?
जो करता आया है जग सारा,
आख़िर, तुम भी वही क्यूँ करते हो?
जो हो समर्थ ख़ुद ही में तो अकेले चलने से पीछे क्यूँ हटते हो ?
अपनी खुशियों के तुम ही हक़दार भी हो ,
और अपनी कहानी के प्रमुख किरदार भी,
जो आए और गए वो तो केवल सहायक थे।
और अगर कहानी अभी बाकी है ,
तो नए किरदारों का आना जाना भी बाकी है,
नई राहें भी तुम्हारे इंतज़ार में हैं और नये राही भी,
तो थामो अपने दिल को और बढ़ो आगे,अधूरेपन को त्यागो और खुद में ही पूरे बनो!
This is Amazing
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Thank you
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