हँसता खेलता बचपन ,खिलौनो कि लालसा से भरा बचपन,शरारतों का प्रतीक बचपन,भाई, बहन से खिलौनो के लिये लड़ता बचपन,कुछ ऐसा था मेरा बचपन। पर आज सडक पर, ये कैसा दिखा बचपन ?शरारतों से परे, गुमसुम बचपन,खिलौनो से भरा, मगर सूनी आँखों वाला बचपन,अपने खिलौने खुद ही बेचता बचपन ?गरीबी के बोझ से दबा बचपन,भूखा मगरContinue reading “बचपन”
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अब लिखने लगा हूँ
ना जाने तुम कहाँ हो, कैसी हो,किस प्रांत, शहर, या देश जा बसी हो?सालों से तुमको सुना नहीं,चेहरा तो याद है अब भी,पर बरसों से तुमको देखा नहीं। वो तीखे नयन,गुस्से क भार उथाए,ऊँची और सिकुड़ती नाक,बड़ा सा बल खाया माथा,उस पर लटकती 1 लट,और वही सुबह की ताज़ी चाय सी मुस्कान,सब कल ही कीContinue reading “अब लिखने लगा हूँ”
ख़ामोश बातें
आज वो मिली तो कुछ चुप चुप सी थी। खामोश, शांत, खोई हुई सी। यूँ तो कार में बैठे चंद मिनट ही बीतेkl थे उसे। पर जो शख़्स 100 शब्द प्रति मिनट की तेज़ी से बात करता हो, वो अगर 5 मिनट भी चुप बैठ जाए तो समझो ज़माना गुजर जाता है। कार की सीटContinue reading “ख़ामोश बातें”